तैत्तिरीय उपनिषद् के अनुसार, भृगु को क्रमश: ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हुयी। इस क्रम के सम्बन्ध में भृगु वल्ली, पंचम अनुवाक में वर्णित है- "विज्ञानं ब्रह्मेति व्यजानात। विज्ञानाद्ध्येव खल्विमानि भूतानि जायन्ते। विज्ञानेन जातानि जीवन्ति। विज्ञानं प्रत्यभिसंविशन्तीति। " अर्थात, विज्ञान ब्रह्म है ऐसा जाना। क्योंकि, सचमुच में विज्ञान से ही ये प्राणी उत्पन्न होते हैं। उत्पन्न होकर विज्ञान से ही जीवित रहते हैं। विज्ञान में ही प्रत्यावर्तित होकर समाविष्ट होते है।
यहाँ "विज्ञान" शब्द का क्या अर्थ है, यह मुझे स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। (गीताप्रेस द्वारा प्रकाशित हरिकृष्ण दास गोयन्दका कृत व्याख्या में इसका अर्थ विज्ञान स्वरुप चेतन जीवात्मा से लगाया गया है।)
118. Disputes relating to ownership and possession
12 years ago