Monday, May 2, 2011

दरिद्र नारायण

जो राजनीतिक दल भारतीय संस्कृति के अनुरक्षण एवं समृद्धि के प्रति प्रतिबद्ध हैं उनकी पकड़ स्वाभाविक रूप से गावों में मजबूत होनी चाहिए, निर्बल और निर्धन जनता में अधिक पैठ होनी चाहिए, उन्हें दरिद्र नारायण की सेवा को प्रमुखता देनी चाहिए। उन्हें श्रीमद्भागवत में उद्धृत श्री भगवान के इस वचन पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए कि "..गौवें और अनाथ प्राणी मेरे ही शरीर हैं, इन्हें वे ही मुझसे भिन्न समझते हैं जिनकी विवेकदृष्टि पापों के द्वारा नष्ट हो गयी है और जिन्हें अत्यंत कठोर यातना मिलने वाली है.."

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