लक्ष्मी चंचला होती है, यह इसका सहज स्वभाव है। इसे बंदी बनाकर - इसके प्रवाह को रोककर इसका अपमान न करें।इसे अतिथि समझ कर इसका स्वागत करें, इसके सान्निध्य का लाभ उठायें और इसके अगले पड़ाव के लिए किसी अन्य सुपात्र अतिथिसेवी की ओर जाने के लिए इसका मार्ग दर्शन करें।जहाँ अतिथि सत्कार होता है वहां अतिथि आते ही रहते हैं। लक्ष्मी का सत्कार यदि इस दृष्टि से होगा तो वह प्रसन्न रहेगी और आती ही रहेगी ।सर्वोत्तम अर्थ व्यवस्था वह है जिसमें धन का प्रवाह न रुकने पाए।
धन का आदर्श सम्मान या उपयोग इसे किसी अन्य सुपात्र को दान करने में है -
" सर्वस दान दीन्ह सब काहू । जिन्ह पावा राखा नहिं ताहू॥"
यद्यपि यह उक्ति अति उत्साह (राम जन्म ) के प्रसंग में है, किंतु सामान्य व्यवहार के लिए भी अनुकरणीय है ।
रामायण में तीन प्रकार की प्रवृत्तियां परिलक्षित होती हैं : एक देने की - मिथिला की प्रवृत्ति , दूसरी देने की भी और लेने की भी - अयोध्या की प्रवृत्ति , तीसरी केवल लेने की - लंका की प्रवृत्ति। विधियोग की कसौटी पर अर्थात् संतुलन के दृष्टिकोण से अयोध्या की प्रवृत्ति को उत्तम कहना चाहिए।
118. Disputes relating to ownership and possession
11 years ago