Saturday, March 6, 2010

आचार प्रेरको राजा....

जैसा राजा वैसी प्रजा भगवद्गीता में कहा है -" यद्यद्याचरते श्रेष्ठस्ततदेवेतरो जना:, यत प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते"- अर्थात श्रेष्ठ लोग (वर्तमान सन्दर्भ में नेता ) जैसा आचरण करते हैं उसी का अनुकरण जनता भी करती है शुक्र नीति में भी कहा है- "आचार प्रेरको राजा ...."
अच्छाई बुराई दोनों सामान्यतया शासक वर्ग से ही उत्पन्न होती हैं क़ानून की वास्तविक शक्ति अधिनियम के कठोर प्रावधानों में नहीं होती अपितु, यह बात अधिक महत्वपूर्ण होती है कि क़ानून की रगों में किसका रक्त प्रवाहित हो रहा है और इसके पोषणकर्ता, व्याख्याता तथा प्रयोक्ता कौन हैं

Sunday, February 28, 2010

संसाधन सुलभ हैं, इनका प्रयोक्ता ही दुर्लभ है

अमंत्र्यमक्षरम नास्ति नास्ति मूलमनौसधम
अयोग्य: पुरुषो नास्ति योजकस्तत्र दुर्लभ:
मंत्र विहीन कोई अक्षर नहीं होता, किसी भी लता-गुल्म की जड़ औषध विहीन नहीं है तथा कोई व्यक्ति अयोग्य नहींहोता। इन सबों का सही ढंग से प्रयोग करने वाला व्यक्ति ही दुर्लभ होता है। - शुक्रनीति: /१२६