Saturday, May 7, 2011

निष्ठा और तर्क

तर्क की तर्कसंगत सीमा होनी चाहिए। शास्त्रों में स्थान-स्थान पर अति तर्क से बचने की संस्तुति की गयी है और विशुद्ध ज्ञान रूप परमतत्व को अतर्क्य कहा गया है। कठोपनिषद (१/२/९ ) में यमराज ने नचिकेता की प्रसंशा करते हुए कहा - नैषा तर्केण मतिरापनेया... (ऐसी मति तर्क से नहीं मिल सकती। यह तो तभी उत्पन्न होती है , जब भगवत्कृपा से किसी महापुरुष का संग प्राप्त होता है। ऐसी निष्ठा ही मनुष्य को आत्मज्ञान के लिए प्रयत्न करने में प्रवृत्त करती है। हमें तुम जैसे ही पूछने वाले जिज्ञासु मिला करें)।

Friday, May 6, 2011

तुलसी का जवाब नहीं

विद्यार्थी जीवन में मैंने तुलसी कृत श्री रामचरित मानस एवं भगवद्गीता का अनेक बार पाठ किया था - बिना किसी शोधपरक उद्देश्य के। बाद में क़ानूनी लेखों और निर्णयों में दिए गए उद्धरणों की पुष्टि करने के क्रम में तथा प्रसंगवश अनेक अन्य शास्त्रों यथा- श्रीमद्भागवत, ब्रह्मसूत्र , वृहदारण्यक एवं अन्य एक सौ आठ उपनिषद् इत्यादि का आद्योपांत पाठ कर डाला। स्वाभाविक रूप से इस क्रम में अनेक आवेशात्मक अनुभव भी होते रहे। किन्तु श्रीमद्भागवत पढ़ते समय भी प्राय: जब किसी गूढ़ एवं वेदान्तीय कथानक में तन्मय जाता तो मुझे मानस की समानार्थी चौपाई याद पड़ती और मेरे मुख से स्फुटित हो जाता - "वाह! तुलसी का जवाब नहीं!"

सर्वं खल्विदं ब्रह्म

जो कुछ भी पढ़ता हूँ, मुझे गजेन्द्र मोक्ष के दूसरे श्लोक में समाहित दिखाई देता है- "यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयं , यो अस्मात परस्मात्च परस्तं प्रपद्ये स्वयंभुवं" = जिसमें जिससे जिसके द्वारा जिसकी सत्ता जो स्वयं वही.... ।

उपनिषद् एवं ग्राम्य भाषा शैली

बचपन में बुजुर्गों के शब्द एवं शैली मुझे गाँव के स्कूली शिक्षा से ऊपर पहुँचने पर अटपटे और गंवारू लगने लगे । विगत वर्षों में मैंने सभी १०९ उपनिषदों का आद्योपांत पाठ किया । इस दौरान प्राय: मेरी धुंधली स्मृति में बचपन में सुने हुए वे शब्द उभरने लगते और मुझे प्रतीत होता कि गाँव के बुजुर्गों कि शैली औपनिषदिक शैली से काफी मेल खाती थी।

Thursday, May 5, 2011

नटराज स्त्रोत्र

कल से wisdomspeaks.org पर महर्षि पतंजलि कृत "साम्ब नटराज स्त्रोत्र " प्रसारित हो रहा है. बहुत सुन्दर और कर्णप्रिय है. पतंजलि ने पाणिनि के सूत्रों पर महाभाष्य लिखा था। मुझे लगता है, व्याकरण की दृष्टि से भी यह स्त्रोत्र विशुद्ध एवं अतुलनीय होगा। इस स्त्रोत्र का लिंक है: http://www.wisdomspeak.org/mantra/?page_id=58

अक्षय तृतीया

आज अक्षय तृतीया है। अक्षय तृतीया को हमारे गाँव (उत्तर प्रदेश का गोरखपुर जिला) में चींटे को गुड खिलाकर खेत में जाते हैं और कुछ देर फावड़ा चलाकर कृषि कार्य का शुभारम्भ करते हैं- अर्थात इसे उद्यम दिवस के रूप में मनाते हैं। चींटे को गुड खिलाते समय प्रार्थना करते हैं कि हम गुड में चींटे कि भांति उद्यम में लगे रहें, जैसे चींटा गुड को नहीं छोड़ता उसी प्रकार हम उद्यम से विरत न हों। अन्य स्थानों पर अक्षय तृतीया कैसे मनाई जाती है ?

Monday, May 2, 2011

दरिद्र नारायण

जो राजनीतिक दल भारतीय संस्कृति के अनुरक्षण एवं समृद्धि के प्रति प्रतिबद्ध हैं उनकी पकड़ स्वाभाविक रूप से गावों में मजबूत होनी चाहिए, निर्बल और निर्धन जनता में अधिक पैठ होनी चाहिए, उन्हें दरिद्र नारायण की सेवा को प्रमुखता देनी चाहिए। उन्हें श्रीमद्भागवत में उद्धृत श्री भगवान के इस वचन पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए कि "..गौवें और अनाथ प्राणी मेरे ही शरीर हैं, इन्हें वे ही मुझसे भिन्न समझते हैं जिनकी विवेकदृष्टि पापों के द्वारा नष्ट हो गयी है और जिन्हें अत्यंत कठोर यातना मिलने वाली है.."