Friday, May 6, 2011

सर्वं खल्विदं ब्रह्म

जो कुछ भी पढ़ता हूँ, मुझे गजेन्द्र मोक्ष के दूसरे श्लोक में समाहित दिखाई देता है- "यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयं , यो अस्मात परस्मात्च परस्तं प्रपद्ये स्वयंभुवं" = जिसमें जिससे जिसके द्वारा जिसकी सत्ता जो स्वयं वही.... ।

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