Saturday, May 7, 2011

निष्ठा और तर्क

तर्क की तर्कसंगत सीमा होनी चाहिए। शास्त्रों में स्थान-स्थान पर अति तर्क से बचने की संस्तुति की गयी है और विशुद्ध ज्ञान रूप परमतत्व को अतर्क्य कहा गया है। कठोपनिषद (१/२/९ ) में यमराज ने नचिकेता की प्रसंशा करते हुए कहा - नैषा तर्केण मतिरापनेया... (ऐसी मति तर्क से नहीं मिल सकती। यह तो तभी उत्पन्न होती है , जब भगवत्कृपा से किसी महापुरुष का संग प्राप्त होता है। ऐसी निष्ठा ही मनुष्य को आत्मज्ञान के लिए प्रयत्न करने में प्रवृत्त करती है। हमें तुम जैसे ही पूछने वाले जिज्ञासु मिला करें)।

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