Friday, April 29, 2011

समस्या यह नहीं की ईमानदारी से धनार्जन नहीं किया जा सकता। समस्या यह है कि बेईमानी का रास्ता अपनाने वाले को शीघ्र ही सहयोगी मिल जाते हैं और ईमानदारी की राह चलने वाले से उसके अपने भी बिदकने लगते हैं।

पुनर्जन्म सम्बन्धी प्रमुख धारणाएं

. सनातन धर्म- मरने वाले का जन्म अवश्य होता हैकर्मफल के आधार पर शरीर मिलता है
. जैन - पुनर्जन्म होता है किन्तु, कर्म फल देने वाला कोई इश्वर नहीं हैकर्मानुसार आत्मा उन तत्वों को आकर्षित करता है जो शरीर का निर्माण करते हैं
. बौद्ध- मृत्यु के तुरंत बाद पुनर्जन्म होता हैएक से दूसरे दीपक के जलने की तरह आत्मा शरीर धारण करता रहता है
. थिओसोफ़िकल - पुनर्जन्म होता है और नैतिक स्तर के आधार पर जीव श्रेष्ठ श्रेष्ठतर जीवन धारण करता हैचरमोत्कर्ष दैवी जीवन में होता है
. ईसाई एवं इस्लाम - पुनर्जन्म नहीं होतामृत्यु के बाद को जजमेंट डे तक आत्मा विश्राम/प्रतीक्षा करता हैजजमेंट डे को वह कर्मानुसार स्वर्ग या नरक में स्थायी रूप से भेजा जाता है
. यहूदी - एक शाखा पुनर्जन्म में विश्वास करती है दूसरी नहीं
मेरी धारणा - उक्त सभी सही हैं और सभी को सनातन हिन्दू धर्म ग्रंथों में किसी किसी रूप में वर्णित किया गया है। "अन्ते मति: सा गति:" अथवा "यथा दृष्टि तथा सृष्टि" के अनुसार, जीवन भर के अभ्यास के आधार पर जिसकी जैसी धारणा मृत्यु के समय रहती है उसे वैसी गति प्राप्त होती हैजो परमात्मा से तादात्म्य स्थापित कर लेता है वह मरने के बाद भी कहीं नहीं जाता, यहीं पर सर्व व्यापक परम तत्व में विलीन हो जाता है

Wednesday, April 27, 2011

यतो धर्मस्ततो जय:

वृहदारन्यक उपनिषद (//१४) के अनुसार, धर्म ही सबसे श्रेष्ठ सबका नियंता है जिसके बल पर दुर्बल भी बलवान को जीतने की इच्छा रखता है"। प्रसन्नता की बात है कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय का आदर्शवाक्य है -"यतो धर्मस्ततो जय:"।

पूरा पढ़ो, जिस धर्म से सम्बंधित हो कम से कम उसी को ठीक से जान लो

ये तथाकथित विद्वान जो सनातन धर्म की आलोचना करते हैं, निरक्षर से बदतर हैंइन्होने वृक्ष की एक सूखी पत्ती देखी और उसी को वृक्ष कह दिया, एक गन्दी नाली देखी और उसी के आधार पर नगर का चित्रण कर दियाये जिस पंथ से सम्बंधित हैं उसी को पूरी तरह जान लें तो इन्हें अन्य धर्मों में बुराईयाँ नहीं दिखेंगी

Tuesday, April 26, 2011

छुद्र आलोचनाएँ



"ढोल गंवार शूद्र पशु नारी , ये सब ताड़न के अधिकारी ।" क्या तुलसीदास ने केवल इतना ही लिखा है ?
"विभिन्न वर्णों के लिए अलग - अलग दंड।" क्या मनु स्मृति में केवल इतना ही लिखा है ?
यदि मैं भी केवल एक वाक्य या एक अध्याय पकड़ लूँ तो कहूँगा कि मनु ब्राह्मणों के लिए बेहद क्रूर थे। उन्होंने मदिरापान करने पर ब्राह्मण के लिए मृत्यु दंड का प्रावधान किया । और उस मृत्युदंड का तरीका ? - ऐसा ब्रह्मण खौलता हुआ तेल तब तक पिए जब तक उसकी मृत्यु न हो जाय !
मेरी राय में सरकार और शैक्षिक संस्थाएं यदि सामाजिक समरसता के प्रति लेश मात्र भी अपनी जिम्मेदारी समझती हैं, तो प्रत्येक स्तर के विद्यार्थियों को अनिवार्य रूप से निर्वचन के सिद्धांत पढ़ाये जाने चाहिए।