नैकमस्ति न च द्वित्वं सत्चित्कार विज्रिम्भते ॥
- (स्कन्द पुराण , भगवद्गीता माहात्म्य )
सुप्तप्रबोधयो: संधावात्मनो गतिमात्मद्रिक ।
पश्यन्बंधंच मोक्षं च माया मात्रं न वस्तुत: ॥
आत्म दर्शी साधक सुषुप्ति और जागरण की संधि में अपने स्वरुप का अनुभव करे और बंधन तथा मोक्ष दोनों ही माया केवल माया हैं , वस्तुत: कुछ नहीं - ऐसा समझे। - (श्रीमदभागवत ७/१३/५ )