Tuesday, October 6, 2009

11. मोक्ष भी माया है

बन्धोस्ति मोक्षोस्ति ब्रह्मैवास्ति निरामयम
नैकमस्ति न द्वित्वं सत्चित्कार विज्रिम्भते

तो बंधन सत्य है , मोक्ष ही सत्य है। अपितु, बंधन और मोक्ष सभी कुछ ब्रह्ममय है। द्वैत और अद्वैत दोनों भ्रमात्मक हैं। सर्वत्र केवल सत्चिदानन्द ब्रह्म व्याप्त है ।
- (स्कन्द पुराण , भगवद्गीता माहात्म्य )

सुप्तप्रबोधयो: संधावात्मनो गतिमात्मद्रिक
पश्यन्बंधंच मोक्षं माया मात्रं वस्तुत: ॥
आत्म दर्शी साधक सुषुप्ति और जागरण की संधि में अपने स्वरुप का अनुभव करे और बंधन तथा मोक्ष दोनों ही माया केवल माया हैं , वस्तुत: कुछ नहीं - ऐसा समझे - (श्रीमदभागवत ७/१३/५ )

10. सनातन दर्शन एवं लिब्नित्ज़

पाश्चात्य दार्शनिक Leibniz कहते है :
'Reality cannot be found except in One single source, because of the interconnection of all things with one another'.

सनातन दर्शन की यह मान्यता है कि एक ही तत्त्व संपूर्ण चराचर जगत में व्याप्त है। वेदव्यास ने श्रीमद्भागवत तथाब्रह्मसूत्र में सूत्रात्मा एवं सर्वात्मा कहते हुए समस्त ब्रह्माण्ड को उस एक ही तत्त्व से उद्भूत , उसी में स्थित, उसी केद्वारा एक दुसरे से गुंथा हुआ एवं उसी में लय होना बताया है। समस्त ब्रह्माण्ड में वही है , समस्त ब्रह्माण्ड स्वयं वहीहै और ब्रह्माण्ड के अतिरिक्त अर्थात इसके बाहर जो कुछ है वह भी वही है। गजेन्द्र मोक्ष ( श्रीमद्भागवत की एक अंतर्कथा ) में अतीव सुंदर ढंग से निरुपित करते हुए कहा - "यस्मिन्निदं यतश्चेदम येनेदं इदं स्वयं , यो अस्मातपरस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वायम्भुवं" तुलसी ने राम चरित मानस में कहा - सिया राम मय सब जग जानी उपनिषदों का सर्वान्तर एवं तत्वमसि सिद्धांत भी यही निरुपित करता है वस्तुतः मानव स्वयं वही है जिसकी वहअनादि काल से खोज कर रहा है


Sunday, October 4, 2009

9. We are immortal

There is well known principle that everything is mortal .

But the same scriptures also say that what appears to be happening, has happened earlier and will happen in future also. The world as seems in present has been same in the past and will remain in future also. Therefore we can say that we are immortal not only by substance or soul but by form also? Circle of birth and death is only a phenomenon of appearance and disappearance of form!

8. Discipline and freedom

May it be freedom, development or salvation, discipline is the first condition to reach the destination.