'Reality cannot be found except in One single source, because of the interconnection of all things with one another'.
सनातन दर्शन की यह मान्यता है कि एक ही तत्त्व संपूर्ण चराचर जगत में व्याप्त है। वेदव्यास ने श्रीमद्भागवत तथाब्रह्मसूत्र में सूत्रात्मा एवं सर्वात्मा कहते हुए समस्त ब्रह्माण्ड को उस एक ही तत्त्व से उद्भूत , उसी में स्थित, उसी केद्वारा एक दुसरे से गुंथा हुआ एवं उसी में लय होना बताया है। समस्त ब्रह्माण्ड में वही है , समस्त ब्रह्माण्ड स्वयं वहीहै और ब्रह्माण्ड के अतिरिक्त अर्थात इसके बाहर जो कुछ है वह भी वही है। गजेन्द्र मोक्ष ( श्रीमद्भागवत की एक अंतर्कथा ) में अतीव सुंदर ढंग से निरुपित करते हुए कहा - "यस्मिन्निदं यतश्चेदम येनेदं य इदं स्वयं , यो अस्मातपरस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वायम्भुवं"। तुलसी ने राम चरित मानस में कहा - सिया राम मय सब जग जानी ।उपनिषदों का सर्वान्तर एवं तत्वमसि सिद्धांत भी यही निरुपित करता है । वस्तुतः मानव स्वयं वही है जिसकी वहअनादि काल से खोज कर रहा है ।
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