Friday, January 15, 2010

25.चिंतन एवं क्रिया

मैंने संस्कृत के एक प्रोफेसर से सुना है कि संस्कृत व्याकरण के प्रणेता महर्षि पाणिनि को एक बाघ ने मार डाला था।जंगल में महर्षि पाणिनि विचारमग्न थे तब तक उनके शिष्य ने शेर को आते देखा और आवाज दिया - " गुरुदेव व्याघ्र: !" महर्षि पाणिनि स्वभाववश व्याघ्र शब्द का अर्थान्वयन करने लगे। उन्होंने कहा - "विशुद्ध रूपेण घ्राणयति: व्याघ्र:" अर्थात जिसकी घ्राण शक्ति तीव्र विशुद्ध हो उसे व्याघ्र कहते हैं इस प्राणी की विशेषता तो सूंघने की है अतएव , यह सूंघकर चला जायेगा। वे व्याघ्र शब्द के व्याकरणिक अर्थान्वयन में लगे रहे और बाघ उनको मारकर खा गया।

Sunday, January 10, 2010

२४. स्वर्ग, अमरत्व एवं मोक्ष

अमरत्व एवं मोक्ष सतत चिंतन एवं अभ्यास से प्राप्त होने वाला एक भाव है । भय की निवृत्ति ही अमरत्व है तथा इच्छा की निवृत्ति ही मोक्ष है। अमरत्व एवं मोक्ष को प्राप्त करने के लिए इस शरीर का समाप्त होना आवश्यक नहींअपितु, इसे इस शरीर में ही महसूस किया जा सकता है और अक्षय आनंद में मग्न हुआ जा सकता है। निर्भय, निर्लोभ व सर्वान्तर द्रष्टा (अर्थात "वसुधैव शरीरकं" का साधक ) विश्वात्मा से तारतम्य स्थापित कर चुका होता है और सत्य स्वरुप हो जाता है इसलिए , उसको देहावसान के उपरान्त भी कहीं जाने की आवश्यकता नहीं होती। वह इस शरीर में ही मुक्त हो चुका होता है। वस्तुत:, वही अपनी दिव्य इच्छा शक्ति या कौतुक से संसार की व्यवस्थाएं चलाता है और इस दृष्टि से स्वर्ग भोगता हैवह निर्भय हो चुका होता है , अतएव, अमर होता हैउसकी कोई इच्छा नहीं होती, अतएव, इस जीवन में ही मोक्ष (जो इच्छा से मुक्त हो) पद प्राप्त कर लेता हैदेहावसान के बाद जीव कहाँ जाता है , इसका क्या होता है , उसे इन प्रश्नों के भी झमेले में पड़ने की आवश्यकता नहीं


२३.निर्भय समाज

निहत्थे का बल :जिस चीज को हम अपनी कमजोरी समझते हैं वही हमारी सबसे बड़ी ताकत है हमारे पास जो चीज नहीं है उसे खोने का भय भी नहीं है और निर्भय होना सबसे बड़ी शक्ति है। युद्ध भी वही प्रारम्भ करते हैं जिन्हें भय होता है। जो निर्भय है वह पहले से ही विजयी है।

जिसके
पास बन्दूक है वह अधिक भयभीत है। उसे बन्दूक छिनने का भय है, अनुचित रूप से गोली चल जाने का भय है, बन्दूक जब्त होने का भय है, अभियोजन का भय है इत्यादि इत्यादि.... विचार करें और महसूस करें, क्या उसे भी इतने भय हैं जिसके पास बन्दूक नहीं है ? यह बात धन तथा अन्य साधनों के बारे भी लागू होती है।

भय
ही मृत्यु है निर्भय होना ही अमरत्व है जिसे मृत्यु से भय नहीं, वह अमर है संसाधनों को हथियाने की होड़ लगाने से पहले अपने अमरत्व को पहचानो। तुम अपने अमरत्व को पहचान लोगे तो संसाधन तुम्हारी गुलामी करेंगे, अन्यथा तुम संसाधनों के गुलाम बने रहोगे। साधनसम्पन्न होकर भयग्रस्त रहने से साधनहीन रहकर निर्भय रहना श्रेष्ठतर है। कुछ हासिल करना है तो पहले अभय को हासिल करो; दमन करना है तो पहले अपने भय का दमन करो।शासन करना है तो पहले अपनी छुद्र इच्छाओं और दुष्प्रवृत्तियों को शासित करो।

अतएव
, साधन हीनों ! स्वयं को निर्बल निर्धन समझने वालों ! अपनी निर्भयता की शक्ति को पहचानो; योग अर्थात ऐक्यता की शक्ति को पहचानो और एकजुट हो जाओ आत्मानुसाशित व्यक्ति को किसी अन्य से नियंत्रित होने की आवश्यकता नहीं चन्द भयग्रस्त लोगों से भयभीत होना तुम्हारा भ्रम है। वास्तव में तुम पहले से ही विजयी हो जिन्हें तुम शासक समझते हो वे तुम्हारे सेवक
हैं। जिन्हें तुम शक्तिशाली , साधन संपन्न व दुर्जेय समझकर भय करते हो उनमें से अधिकाँश पहले से ही मरे हुए हैं और जो जीवित हैं वह तुम्हारे ही हितैषी हैं