Sunday, January 10, 2010

२४. स्वर्ग, अमरत्व एवं मोक्ष

अमरत्व एवं मोक्ष सतत चिंतन एवं अभ्यास से प्राप्त होने वाला एक भाव है । भय की निवृत्ति ही अमरत्व है तथा इच्छा की निवृत्ति ही मोक्ष है। अमरत्व एवं मोक्ष को प्राप्त करने के लिए इस शरीर का समाप्त होना आवश्यक नहींअपितु, इसे इस शरीर में ही महसूस किया जा सकता है और अक्षय आनंद में मग्न हुआ जा सकता है। निर्भय, निर्लोभ व सर्वान्तर द्रष्टा (अर्थात "वसुधैव शरीरकं" का साधक ) विश्वात्मा से तारतम्य स्थापित कर चुका होता है और सत्य स्वरुप हो जाता है इसलिए , उसको देहावसान के उपरान्त भी कहीं जाने की आवश्यकता नहीं होती। वह इस शरीर में ही मुक्त हो चुका होता है। वस्तुत:, वही अपनी दिव्य इच्छा शक्ति या कौतुक से संसार की व्यवस्थाएं चलाता है और इस दृष्टि से स्वर्ग भोगता हैवह निर्भय हो चुका होता है , अतएव, अमर होता हैउसकी कोई इच्छा नहीं होती, अतएव, इस जीवन में ही मोक्ष (जो इच्छा से मुक्त हो) पद प्राप्त कर लेता हैदेहावसान के बाद जीव कहाँ जाता है , इसका क्या होता है , उसे इन प्रश्नों के भी झमेले में पड़ने की आवश्यकता नहीं


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