Tuesday, October 6, 2009

11. मोक्ष भी माया है

बन्धोस्ति मोक्षोस्ति ब्रह्मैवास्ति निरामयम
नैकमस्ति न द्वित्वं सत्चित्कार विज्रिम्भते

तो बंधन सत्य है , मोक्ष ही सत्य है। अपितु, बंधन और मोक्ष सभी कुछ ब्रह्ममय है। द्वैत और अद्वैत दोनों भ्रमात्मक हैं। सर्वत्र केवल सत्चिदानन्द ब्रह्म व्याप्त है ।
- (स्कन्द पुराण , भगवद्गीता माहात्म्य )

सुप्तप्रबोधयो: संधावात्मनो गतिमात्मद्रिक
पश्यन्बंधंच मोक्षं माया मात्रं वस्तुत: ॥
आत्म दर्शी साधक सुषुप्ति और जागरण की संधि में अपने स्वरुप का अनुभव करे और बंधन तथा मोक्ष दोनों ही माया केवल माया हैं , वस्तुत: कुछ नहीं - ऐसा समझे - (श्रीमदभागवत ७/१३/५ )

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