Sunday, February 28, 2010

संसाधन सुलभ हैं, इनका प्रयोक्ता ही दुर्लभ है

अमंत्र्यमक्षरम नास्ति नास्ति मूलमनौसधम
अयोग्य: पुरुषो नास्ति योजकस्तत्र दुर्लभ:
मंत्र विहीन कोई अक्षर नहीं होता, किसी भी लता-गुल्म की जड़ औषध विहीन नहीं है तथा कोई व्यक्ति अयोग्य नहींहोता। इन सबों का सही ढंग से प्रयोग करने वाला व्यक्ति ही दुर्लभ होता है। - शुक्रनीति: /१२६

2 comments:

  1. डा.त्रिपाठी जी,
    आपकी शोध वृत्ति काबिल-ए-तीरीफ है खासकर जिस पेशे मे आप है यहाँ सही को गलत और गलत को सही सिद्द करने की पेशेगत मजबूरियों मे व्यक्ति खुद क्या है यह जान ही नही पाता हैं। आपके सुत्र वाक्य सोचने के लिए एक वाजिब कारण देते हैं।
    डा.अजीत

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  2. डा० अजीत जी,
    कानून का क्षेत्र विशाल तो है किन्तु तृप्तिदायक नहीं। क़ानून में मुझे ऐसा कुछ भी नहीं मिला जिसमें डूब जाने का मन करे। हाँ, जब मैं क़ानून का मानवीकरण करके देखता हूँ और क़ानून को मानव शरीर की तरह अनुशासित करने के बारे में सोचता हूँ तब लगता है कि कुछ सोच रहा हूँ। मेरा कोई शब्द किसी को सोचने के लिए प्रेरित करे , यही मेरे सोच की सार्थकता है।

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