राजा/शासक को योगी होना चाहिए :
पतंजलि ने कहा -
योगश्चित्तवृत्तिनिरोध: ॥ योगसूत्रम, १/२॥ अर्थात् मन की वृत्तियों का निरोध ही योग है ।
शुक्राचार्य, जिनको योगेश्वर श्रीकृष्ण ने भी भगवद्गीता के दशवें अध्याय मे 'कवीनामुशना कवि:' कहते हुए सर्वश्रेष्ठ नीतिकार कहा , कहते हैं -
एकस्यैव ही योअशक्तो मनस: संनिवर्हने ।
महीं सागर पर्यन्ताम स कथं ह्यवजेश्यति ॥शुक्रनीति : १/१००॥
अर्थात् जो केवल अपने मन को ही शासित नहीं कर सकता, वह समुद्रपर्यंत फैली इस
धरती का शासन कैसे कर सकता है ?
योगेश्वर श्रीकृष्ण ने भी अर्जुन को योगी होने का ही उपदेश दिया । उन्होंने कहा ,योगी तपस्वी से भी बड़ा है ,ज्ञानी से भी बड़ा है और कर्मसाधक से भी बड़ा है ; अतएव , हे अर्जुन, योगी बनो :
"तपस्विभ्योअधिको योगी ,
ज्ञानिभ्यो अपि मतोअधिक:।
कर्मिभ्यश्चाधिको योगी
तस्माद्योगी भवार्जुन "॥ श्रीमद्भागवद्गीता , ७/४६ ॥
संजय ने महाभारत के परिणाम का आकलन करते हुए गीता के अंत में कहा - विजय वहीं होगी जिधर योगेश्वर हैं :
"यत्र योगेश्वर: कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धर:।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ॥ श्रीमद्भागवद्गीता , १८/७८ ॥
वैश्वीकरण एवं अंतरजाल (इन्टरनेट ) के द्वारा सांस्कृतिक एवं भौगोलिक अलगाव भी निरंतर कम हो रहा है। वैश्विक राज्य व्यवस्था आने वाली है । किंतु, इसका संचालन कोई भोगवादी नहीं अपितु, महा योगपुरुष ही कर सकेगा।
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