Friday, October 30, 2009

१४. विधियोग - शास्त्र संकेत


राजा
/शासक को योगी होना चाहिए :
पतंजलि ने कहा -
योगश्चित्तवृत्तिनिरोध: योगसूत्रम, १/२॥ अर्थात् मन की वृत्तियों का निरोध ही योग है
शुक्राचार्य, जिनको योगेश्वर श्रीकृष्ण ने भी भगवद्गीता के दशवें अध्याय मे 'कवीनामुशना कवि:' कहते हुए सर्वश्रेष्ठ नीतिकार कहा , कहते हैं -
एकस्यैव ही योअशक्तो मनस: संनिवर्हने
महीं सागर पर्यन्ताम कथं ह्यवजेश्यति शुक्रनीति : १/१००
अर्थात् जो केवल अपने मन को ही शासित नहीं कर सकता, वह समुद्रपर्यंत फैली इस
धरती का शासन कैसे कर सकता है ?
योगेश्वर श्रीकृष्ण ने भी अर्जुन को योगी होने का ही उपदेश दिया उन्होंने कहा ,योगी तपस्वी से भी बड़ा है ,ज्ञानी से भी बड़ा है और कर्मसाधक से भी बड़ा है ; अतएव , हे अर्जुन, योगी बनो :
"
तपस्विभ्योअधिको योगी ,
ज्ञानिभ्यो अपि मतोअधिक:
कर्मिभ्यश्चाधिको योगी
तस्माद्योगी भवार्जुन "श्रीमद्भागवद्गीता , ७/४६
संजय ने महाभारत के परिणाम का आकलन करते हुए गीता के अंत में कहा - विजय वहीं होगी जिधर योगेश्वर हैं :
"
यत्र योगेश्वर: कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धर:
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम श्रीमद्भागवद्गीता , १८/७८

वैश्वीकरण एवं अंतरजाल (इन्टरनेट ) के द्वारा सांस्कृतिक एवं भौगोलिक अलगाव भी निरंतर कम हो रहा है। वैश्विक राज्य व्यवस्था आने वाली है किंतु, इसका संचालन कोई भोगवादी नहीं अपितु, महा योगपुरुष ही कर सकेगा।

( कृपया लेख संख्या १८ भी देखें )

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