Tuesday, June 15, 2010

सर्वान्तर दर्शन

श्रीमद्भागवत में वर्णित गजेन्द्र मोक्ष के दूसरे श्लोक में लिखा है : "यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं इदं स्वयं, यो अस्मात परस्मात्च, परस्तं प्रपद्ये स्वयंभुवं"। किसी ने इसका हिंदी काव्य रूपांतर किया है - "जिसमें जिससे जिसके द्वारा जिसकी सत्ता जो स्वयं वही ......."।
आध्यात्मिक दृष्टि से सर्वान्तर या अभेद दर्शी की भाव भूमि में तथा लौकिक स्तर पर समतामूलक समाज की कल्पना करते हुए मैं भी सोचता हूँ : सबका सबमें सबके द्वारा सबकी सत्ता सब स्वयं वही

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