Thursday, December 2, 2010

संविधान चालीसा पर घमासान

एक लोक प्रिय वेब साईट पर मेरे द्वारा लिखी गयी "संविधान चालीसा" के दो शब्दों "रामराज" एवं "हरिजन" पर घमासान लेखयुद्ध चल रहा है । एक खेमा रामराज शब्द को अलोकतांत्रिक एवं नारी तथा दलितों के प्रति अन्यायी और राजशाही का प्रतीक मानते हुए इसे हर हाल में हटाकर इसके स्थान पर लोकराज शब्द प्रयोग करने पर अड़ा हुआ है तो दूसरा इसे लोकराज से अधिक व्यापक एवं आदर्श मानते हुए गाँधी जी के रामराज की परिकल्पना की हिमायत करते हुए इसे उपयुक्त कह रहा है।
मैंने भी स्पष्टीकरण दिया कि शब्द "रामराज्य" रामायण के राजा राम की भक्ति का प्रतीक मात्र नहीं है अपितु, यह एक मुहावरा है जो आदर्श राज्य का प्रतीक है - जहाँ सब लोग सुखी, साधन संपन्न , निरोग होवें और परस्पर मैत्री पूर्वक रहें, सर्वत्र सदाशयता हो, विवाद , मुकदमेबाजी का नाम न हो इत्यादि... ।उक्त परिचर्चा में "रामराज " के पक्षधर मित्रों का यह कहना सही है कि "रामराज" शब्द उसी प्रकार एक पंथ निरपेक्ष मुहावरा है जैसे "रामबाण , "लक्ष्मणरेखा", "इंशाअल्ला" इत्यादि।
मेरा यह भी मानना है कि लोकराज शब्द रामराज में आवश्यक रूप से में समाहित है किन्तु आवश्यक नहीं कि लोकराज में रामराज के गुण मिल सकें। पुनश्च लोकतंत्र हमारे संविधान में भी अनेक विशेषताओं में से एक है , समाजवाद , गणतंत्र इत्यादि अन्य विशेषताएं है। रामराज की अवधारणा में में ये सभी विशेषताएं शामिल है और इसके आलावा भी वह सब शामिल है जिसे पाने की कल्पना हमारे संविधान में की गयी है ।

जो लोग शब्द राम राज पर आपत्ति कर रहे हैं वही हरिजन शब्द को भी अस्वीकार कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह शब्द गांधी जी का हरिजनों के प्रति एक छलावा था । इनका यह भी कहना है कि गांधी जी को महात्मा गांधी के बजे हरिजन गांधी कहा जाना चाहिए , वे हिन्दू धर्म और वर्ण व्यवस्था के हिमायती थे और महात्मा कहलाने के योग्य नहीं थे। इन लोगों ने चालीसा में हरिजन के स्थान पर "जन-जन " शब्द प्रयोग करने की सलाह दी है। मेरी विवशता यह है कि मुझे चार अक्षरों का एक शब्द चाहिए जो उन लोगों के लिए प्रयुक्त किया जा सके जिन्हें हमारा संविधान अनुसूचित की श्रेणी में रखते हुए आरक्षण प्रदान करता है, क्योकि हरिजन शब्द मैंने इसी सन्दर्भ में प्रयुक्त किया है- "हरिजन हित उपबंध विशेषा ..."। जाहिर है कि जन-जन के लिए विशेष उपबंध नहीं किया जा सकता।

युद्ध देखने के लिए लायर्स क्लब इंडिया.कॉम पर यह कड़ी देखें:
http://www.lawyersclubindia.com/forum/Re-Re-Re-Re-Re-Re-LCI-as-Parliament--28005.asp?1=1&offset=1

http://www.lawyersclubindia.com/forum/26th-November-The-Constitution-Day-27634.asp

http://www.lawyersclubindia.com/forum/Congratulations-to-Nitish-Kumar-27589.asp

http://www.lawyersclubindia.com/forum/Some-features-of-Ram-rajya-27801.asp

अब तलाश है मुझे दो शब्दों की - एक, जो रामराज की पूरी संकल्पना को या उससे अधिक अच्छा कुछ हो सके तो उसको समाहित करता हो किन्तु किसी धर्म सम्प्रदाय , दार्शनिक, राजनीतिक चिन्तक या राजनितिक दल द्वारा प्रयुक्त न किया गया हो और दूसरा, जो अनुसूचित एवं पिछड़े वर्ग को इंगित करता हो किन्तु किसी दार्शनिक , चिन्तक, नेता, राजनीतिक दल इत्यादि द्वारा प्रयुक्त न हो।

5 comments:

  1. The view of mahatma Gandhi on Ramrajya is below,

    Ramrajya
    BY RAMARAJYA I do not mean Hindu Raj. I mean by Ramarajya Divine Raj, the Kingdom of God. For me Rama and Rahim are one and the same deity. I acknowledge no other God but the one God of truth and righteousness.
    Whether Rama of my imagination ever lived or not on this earth, the ancient ideal of Ramarajya is undoubtedly one of true democracy in which the meanest citizen could be sure of swift justice without an elaborate and costly procedure. Even the dog is described by the poet to have received justice under Ramarajya. (YI, 19-9-1929, p. 305)
    ________________________________________
    Ramarajya of my dream ensures equal rights alike of prince and pauper. (ABP, 2-8-1934)

    source:
    http://www.mkgandhi.org/momgandhi/chap67.htm

    The word "RAMRAJYA" is deeply penetrated, understandable and has wider meaning than any other word.
    Ashutosh Bhartiya of LCI

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  2. The view of mahatma Gandhi on Ramrajya is below,

    Ramrajya
    BY RAMARAJYA I do not mean Hindu Raj. I mean by Ramarajya Divine Raj, the Kingdom of God. For me Rama and Rahim are one and the same deity. I acknowledge no other God but the one God of truth and righteousness.
    Whether Rama of my imagination ever lived or not on this earth, the ancient ideal of Ramarajya is undoubtedly one of true democracy in which the meanest citizen could be sure of swift justice without an elaborate and costly procedure. Even the dog is described by the poet to have received justice under Ramarajya. (YI, 19-9-1929, p. 305)
    ________________________________________
    Ramarajya of my dream ensures equal rights alike of prince and pauper. (ABP, 2-8-1934)

    source:
    http://www.mkgandhi.org/momgandhi/chap67.htm

    The word "RAMRAJYA" is deeply penetrated, understandable and has wider meaning than any other word.
    Ashutosh Bhartiya of LCI

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  3. लोग स्वीकार नहीं करते इसलिए रामराज शब्द को हटाना उचित नहीं है| किसी के अस्वीकार कर देने से अवधारणा तो गलत सिद्ध नहीं होती है| इसके अतिरिक्त आप यदि इन लोगो को प्रसन्न करने के लिए कोई शब्द ढूँढ भी लेते है , कुछ समय बाद यदि अन्य लोग उससे प्रसन्न नहीं होकर अन्य शब्द की मांग करते है तो फिर दुसरे शब्द की खोज शुरू कर देंगे. इस प्रकार यहाँ कभी नहीं समाप्त होने वाली परंपरा ही बन जाएगी | अतः वेद-शास्त्रों पर ही जोर देना उचित है | लोगो को खुश करने को आवश्कता से अधिक महत्त्व देना उचित नहीं है |

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  4. लोग स्वीकार नहीं करते इसलिए रामराज शब्द को हटाना उचित नहीं है| किसी के अस्वीकार कर देने से अवधारणा तो गलत सिद्ध नहीं होती है| इसके अतिरिक्त आप यदि इन लोगो को प्रसन्न करने के लिए कोई शब्द ढूँढ भी लेते है , कुछ समय बाद यदि अन्य लोग उससे प्रसन्न नहीं होकर अन्य शब्द की मांग करते है तो फिर दुसरे शब्द की खोज शुरू कर देंगे. इस प्रकार यहाँ कभी नहीं समाप्त होने वाली परंपरा ही बन जाएगी | अतः वेद-शास्त्रों पर ही जोर देना उचित है | लोगो को खुश करने को आवश्कता से अधिक महत्त्व देना उचित नहीं है |

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  5. लोग स्वीकार नहीं करते इसलिए रामराज शब्द को हटाना उचित नहीं है| किसी के अस्वीकार कर देने से अवधारणा तो गलत सिद्ध नहीं होती है| इसके अतिरिक्त आप यदि इन लोगो को प्रसन्न करने के लिए कोई शब्द ढूँढ भी लेते है , कुछ समय बाद यदि अन्य लोग उससे प्रसन्न नहीं होकर अन्य शब्द की मांग करते है तो फिर दुसरे शब्द की खोज शुरू कर देंगे. इस प्रकार यहाँ कभी नहीं समाप्त होने वाली परंपरा ही बन जाएगी | अतः वेद-शास्त्रों पर ही जोर देना उचित है | लोगो को खुश करने को आवश्कता से अधिक महत्त्व देना उचित नहीं है |

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