Monday, April 18, 2011

आस्था और व्यवस्था

आस्था से द्रोह करने वाला व्यवस्था का का द्रोही है। आप प्रशासक, जन प्रतिनिधि, न्यायाधीश, मंत्री, प्रधानमन्त्री, राष्ट्रपति हैं - यह एक आस्था है। आस्था के बिना पद, प्रणाली या व्यवस्था का कोई अस्तित्व नहीं। आस्था के बिना किसी सभ्य समाज की कल्पना नहीं की जा सकती। आस्था तत्त्व रूप से सदैव विद्यमान रहती है, केवल इसका बाह्य स्वरुप देश- काल के अनुरूप बदलता है, जैसे हम मौसम और फैशन के अनुसार कपड़े बदलते हैं।

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