Tuesday, October 4, 2011

रुद्राष्टाध्यायी, श्रीमद्भागवत व भारतीय संविधान

ब्रह्म के सर्वव्यापकता का चित्रण जिस प्रकार रुद्राष्टाध्यायी के नमकाध्याय में हुआ है वह मुझे जितना सुरुचिपूर्ण और बोधगम्य लगा वैसा अन्यत्र नहीं दिखा. इसे पढने से श्रीमद्भागवत में सर्वान्तर ब्रह्म को निरूपित करने वाले वाक्य, विशेषतया गजेन्द्र मोक्ष का दूसरा श्लोक "यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं या इदं स्वयं..." और अधिक स्पष्ट होने लगे.
भारतीय संविधान की मूल भावना प्रजातंत्र व समाजवाद अर्थात "जनता के द्वारा, जनता के लिए, जनता का राज्य" के सन्दर्भ में भी मैं कहने लगा - "सबमें, सबसे, सबके द्वारा, सबकी सत्ता सब स्वयं वही".

2 comments:

  1. NICE.
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    Happy Dushara.
    VIJAYA-DASHMI KEE SHUBHKAMNAYEN.
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    MOBILE SE TIPPANI DE RAHA HU.
    ISLIYE ROMAN ME COMMENT DE RAHA HU.
    Net nahi chal raha hai.

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  2. Dhanyavaad shashtri ji. Aapko bhi vijayadashmi ki hardik shubhkamnayen.Meri nishkriyata ko kshama karte huye mujh par sneh banaye rahen.

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