Sunday, November 8, 2009

१५. धन को रोकना धन का अपमान है

लक्ष्मी चंचला होती है, यह इसका सहज स्वभाव है। इसे बंदी बनाकर - इसके प्रवाह को रोककर इसका अपमान करें।इसे अतिथि समझ कर इसका स्वागत करें, इसके सान्निध्य का लाभ उठायें और इसके अगले पड़ाव के लिए किसी अन्य सुपात्र अतिथिसेवी की ओर जाने के लिए इसका मार्ग दर्शन करें।जहाँ अतिथि सत्कार होता है वहां अतिथि आते ही रहते हैं। लक्ष्मी का सत्कार यदि इस दृष्टि से होगा तो वह प्रसन्न रहेगी और आती ही रहेगी ।सर्वोत्तम अर्थ व्यवस्था वह है जिसमें धन का प्रवाह न रुकने पाए।
धन का आदर्श सम्मान या उपयोग इसे किसी अन्य सुपात्र को दान करने में है -
"
सर्वस दान दीन्ह सब काहूजिन्ह पावा राखा नहिं ताहू॥"
यद्यपि यह उक्ति अति उत्साह (राम जन्म ) के प्रसंग में है, किंतु सामान्य व्यवहार के लिए भी अनुकरणीय है
रामायण में तीन प्रकार की प्रवृत्तियां परिलक्षित होती हैं : एक देने की - मिथिला की प्रवृत्ति , दूसरी देने की भी और लेने की भी - अयोध्या की प्रवृत्ति , तीसरी केवल लेने की - लंका की प्रवृत्ति। विधियोग की कसौटी पर अर्थात् संतुलन के दृष्टिकोण से अयोध्या की प्रवृत्ति को उत्तम कहना चाहिए।

6 comments:

  1. लक्ष्मी चंचला होती है मान लिया लेकिन मधु कौडा़ के केस मे क्या कहा जायेगा ? गरीबों के लिये चंचला पर घूसखोरों के लिये? हाँ सुपात्र ही सुपात्र के लिये लक्ष्मी जी को मार्ग दिखायेगा और आज भारतवर्ष में कितने सुपात्र हैं?
    ब्लाग की दुनिया मे स्वागत है ।
    कृ्पया वर्ड वेरीफिकेशन हटायें ताकि कमेंट देने में आसानी हो जाये ।

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  2. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और शुभकामनायें
    कृपया दूसरे ब्लॉगों को भी पढें और उनका उत्साहवर्धन
    करें

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  3. चिट्ठा जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. लेखन के द्वारा बहुत कुछ सार्थक करें, मेरी शुभकामनाएं.
    ---
    महिलाओं के प्रति हो रही घरेलू हिंसा के खिलाफ [उल्टा तीर] आइये, इस कुरुती का समाधान निकालें!

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  4. मित्रों ! उत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद! मैंने अभी ब्लोगिंग की शुरुआत की है, कंप्यूटर प्रयोग के बारे में भी नया हूँ। मेरा व्यवसाय भी भिन्न प्रकृति का है - अध्ययन की दृष्टि से नीरस और व्यवहार की दृष्टि से प्रपंची।

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