Wednesday, November 25, 2009

१८. विधियोगी का आत्म दर्शन

( कृपया लेख संख्या १४ भी देखें )

विधियोगी
समस्त प्राणियों में अपने को एवं समस्त प्राणियों को अपने में देखता हुआ अनुशासन युक्त होकर सबमें समत्व बुद्धि रखते हुए सबके कल्याण के लिए अपनी योगशक्ति (अर्थात सम्यक अनुशासन ) से विश्व को शासित करेगा।

प्रेरणा श्रोत :-
सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि
ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शन:॥गीता, ६/२९॥

एक ही को अर्थात अपने ही को समस्त प्राणियों में देखना - आत्म साक्षात्कार ( self realization ) एवं सब प्राणियों को एक ही में अर्थात अपने में देखना - ईश्वर साक्षात्कार ( God realization ) है !



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