हमारी भारतीय सनातन संस्कृति समरसता व सामंजस्य पर आधारित है । हमारी सभ्यता में कोई भी वस्तु या व्यक्ति उपेक्षणीय नहीं है। यहाँ तक कि हमारे शास्त्रों में झाड़ू को भी पैर से छूने की मनाही है।
कबीर साहब ने दिखावटी पूजा की आलोचना करते हुए फटकार लगाने की रौ में कह दिया था कि, "घर की चाकी कोई न पूजे जाकी पीसी खाय"। किन्तु, यह यथार्थ नहींहै। हमारे गांवों में चूल्हा ,चक्की, सिल-बट्टा , ओखली-मूसल, हल, बैल इत्यादि सबको पूजने की परंपरा रही है और आज भी है ।
118. Disputes relating to ownership and possession
11 years ago
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