Tuesday, August 13, 2013

ब्राह्मण के लक्षण- क्षत्रिय के अनुसार:

(महाभारत, वनपर्व, अध्याय १८०)
 वनवास के क्रम में  ११  वर्ष बीतने   के उपरान्त पांडव हिमालय से नीचे  उतरकर पुन: द्वैतवन में आकर रहने लगे ताकि अगले वर्ष अज्ञातवास की अवधि में दुर्योधन के मन में पांडवों को  निकटवर्ती मैदानी वनमें ही खोजने का लोभ उत्पन्न हो।  द्वैतवन में भीमसेन को  अजगर ने जकड़ लिया। वह अजगर उन्ही के पूर्वज राजा नहुष थे जिन्होंने इन्द्रपद पाने पर मदांध होकर ब्राह्मण ऋषियों को अपना कहार बनाकर पालकी ढुलाते समय अगस्त्य ऋषि को लात मारा था और अगस्त्य ऋषि के शाप के कारण सर्प हो गए थे। अजगर ने युधिष्ठिर से कहा - यदि तुम  कुछ प्रश्नों का तुरंत उत्तर दे दोगे तो मैं भीमसेन को छोड़ दूंगा।
अजगर का प्रश्न - "ब्राह्मण कौन है और उसके लिए जानने योग्य तत्व क्या है?"
युधिष्ठिर- जिसमें सत्य, क्षमा, सुशीलता, क्रूरता का अभाव,तपस्या और दया - ये सद्गुण दिखाई देते हों वही ब्राह्मण है। जानने योग्य तत्व तो परमब्रह्म ही है, जो दुःख और सुख से परे है तथा जहां पहुंचकर मनुष्य शोकके पार हो जाता है। 
अजगर: जो गुण तुमने बताया वह तो शूद्र इत्यादि अन्य  वर्णों में भी रहते हैं और ब्रह्म सबके लिए समान है।
युधिष्ठिर: यदि शूद्र में सत्य आदि उक्त  लक्षण हैं तो वह शूद्र नहीं है और यदि ब्राह्मण में उक्त लक्षण नहीं हैं तो वह ब्राह्मण नहीं है। जिसमें उक्त लक्षण मौजूद हों वह ब्राह्मण माना गया है और जिसमें न हों उसे शूद्र कहना चाहिए। 
 अजगर- यदि आचार से ही ब्राह्मण की परीक्षा की जाय , तबतो जबतक उसके अनुसार कर्म  न हो जाति व्यर्थ ही है।
युधिष्ठिर- मनुष्यों में जाति की परीक्षा करना बहुत ही कठिन है क्योंकि इस समय सभी वर्णों का परस्पर सम्मिश्रण हो रहा है। इसलिए जो तत्वदर्शी हैं वे शील को ही प्रधानता देते हैं और उसे ही अभीष्ट मानते हैं। जब तक बालक का संस्कार करके उसे वेद  का स्वाध्याय न कराया जाय, तब तक वह शूद्र के समान है। यदि वैदिक संस्कार करके वेदाध्ययन करने पर भी ब्राह्मण आदि वर्णों में अपेक्षित शील और सदाचार का उदय नहीं हुआ तो उसमें प्रबल वर्णसंकरता है, ऐसा विचार पूर्वक निश्चय किया गया है। इसलिए, इस समय जिसमें संस्कार के साथ-साथ सदाचार की उपलब्धि हो वही ब्राह्मण है।

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