Sunday, February 14, 2010

विधि सार रूप से अनादि है

हम किसी मत , सिद्धांत या कानून का प्रादुर्भाव किसी समय में और किसी संस्था या व्यक्ति द्वारा किया हुआ जानते हैं। किन्तु, वस्तुत: यह उद्भूत नहीं होता अपितु नवीकृत होता है या इसकी पुनर्प्राप्ति होती है। विधि सार रूप से शाश्वत है । यह पहले भी रही है और सदैव रहेगी। केवल इसका प्रारूप बदलता रहता है।

1 comment:

  1. सही है। फिर मन बार-बार अन्य विषयोंकी ओर क्यों खिचा जाता है?

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