Friday, February 12, 2010

निश्चय ब्रह्म

यह सारा जगत निश्चय ब्रह्म ही है। यह निश्चय से ही उत्पन्न होने वाला , निश्चय में ही लीन होने वाला और निश्चय में ही चेष्टा करने वाला है; ऐसा समझते हुए शांत होकर निश्चय की उपासना करे। पुरुष निश्चय ही निश्चयात्मक है। इस जगतमें पुरुष जैसे निश्चय वाला होता है वैसा ही देहावसान के बाद हो जाता है।* अतएव, निश्चय ही निश्चय करना चाहिए। (छान्दोग्य उपनिषद् /१४/- शाण्डिल्य विद्या)

अतएव, हम शुभ निश्चय वाले हों। हमारे शुभ निश्चय अखिल विश्व में फैलें। सारे विश्व से शुभ निश्चय हमारे पास आवें।
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* स्थित्वास्यामन्तकालेअपि ब्रह्मनिर्वाणमिच्छति - गीता २/७२; अन्यत्र भी लिखा है- अन्ते मति: सा गति: ।
गीता
में "संशयात्मा विनश्यति" (४/४०) कहते हुए सर्वत्र "निश्चय " का ही प्रतिपादन किया गया है, यथा - तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृत निश्चय: (२/३७), निश्चयेन योक्तव्यो योगोअनिर्विन्न्चेतसा ( ६/२३), संतुष्ट: सततं योगी यतात्मा दृढ़निश्चय: (९/१२)।

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