एक माह पूर्व मैंने एक नारा दिया -"डिग्री तुम बांटो, शिक्षा हम बाँटेंगे" और "door Step University" की अवधारणा प्रस्तुत किया । मिश्रित प्रतिक्रियाएं मिलीं। उच्च शिक्षण संस्थाओं के लिए मैंने कहा - जब आपकी कक्षाओं में सैकड़ो में से १०-२० विद्यार्थी ही आते है, तो उतने तो घरों की छतों पर बुलाकार पढ़ाये जा सकते हैं! ऐसा करने से आमजन को भी बड़े विद्वानों को देखने - सुनने का अवसर मिलेगा ! योजना का पहला सफल प्रयोग बसंत पंचमी को मैंने अपने निवास/सामाजिक -विधिक प्रचेतन समिति के कार्यालय के छत पर विधि छात्रों की एक भाषण प्रतियोगिता के साथ किया जिसमे इलाहबाद विश्वविद्यालय के तीन प्रोफेसर उत्साह के साथ शामिल हुए। प्रतियोगिता का विषय था - "मौलिक कर्त्तव्य- महत्व एवं प्रयोज्यता "।
संयोगवश, उक्त सन्देश के दो सप्ताह बाद झारखण्ड के एक विधि महाविद्यालय से मेरे पास एक डाक आई जिसके लिफाफे पर मुझे उस महाविद्यालय का प्रिंसिपल दर्शित करते हुए मेरा पता लिखा था। लिफाफे में नए साल की एक बेहतरीन डायरी थी। मैं उस महाविद्यालय का नाम तक नहीं जानता था। मैंने इन्टरनेट से खोज कर सम्बंधित विश्वविद्यालय के कुलसचिव को इमेल से शिकायत किया- अभी तक कोई उत्तर नहीं मिला। इस तरह की संस्थाओं में दी जा रही शिक्षा के बारे में अनुमान लगाना कठिन नहीं है।
एक और संयोग कि, इन्टरनेट के जरिये मित्रता स्थापित करने वाले झारखण्ड के ही एक मित्र मेरे "डोर स्टेप यूनिवर्सिटी" के विचार से प्रभावित है और अपने शहर में इसे कार्यान्वित करने को उत्सुक है।
क्या "डोर स्टेप यूनिवर्सिटी" की योजना अव्यावहारिक या असंभव है ?
118. Disputes relating to ownership and possession
10 years ago
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